संदेश

सावण सायरी

चित्र
                                                         सावण सुरंगो सोवणों आभै बरसे मेह                                                          दूर बैठ्यो सायबो कीकर जताऊं नेह!

आजादी

  मैं ऄक दुकनदार रै सागै सागै अेक छोटो सो लेखक बी हूं। इण लेखक रै गुण नै कदी कदी दुनियां मांय होवण वाळी क्रियावां माथै लिखण खातर बारै काढ़ लिया करूं। मैं जद घर सूं निसरुं तो म्हारै सागै म्हारै मन री जकी कल्पना है वा बी बरोबर निसरै।चलतो फिरतौ जग मांय अर कुदरत सूं होवण वाळी घटनावां माथै निजर राख'र मन ई मन मांय कीं न कीं रचाव करतो रेऊं।हुवै जठै तांई मैं रचाव नै छोटो सो रूप दिया करूं पण कदी कदी मन मांय अेक चीज नै या कोई चितराम नै लेय'र घणी सारी बातां उमटै जद बीं नै लेख रो रूप दे दिया करूं।ओ जको आज रो रचाव है वो है आजादी माथै! कांई हुवै आ अजादी? जकी मांय कोई बी मिनख खुद री मन मरजी सूं सांस ले सकै फिर घूम सकै,चावै जको काज कर सकै। आज आपां मिनखां नै आ सगळी आजादी है, पण सोचो १९४७ सूं पैली रा आपणा बडेरां नै आ मिली कांई? सोच'र देखौ उणारी हालत रै बारै मांय! वे इण सागी सुतंतरता खातर भौत ताफड़ा तोड्या हा जण जा'र आ आजादी बां लोगां सूं बेसी आपां नै मिली।पण आपां उणरौ कांई फायदो उठा रह्या हां? खुद रा सौक पूरा कर लेवां मन चायो काज करां,फिरां आद। बां सौक मांय आ कोनी देखां कै आपणै कारण कोई ...

राजस्थानी कविता

दिखावटी प्रेम   दिखावट रै इण दौर मांय म्हारी आस,सपना न्यारा है जगत री बात ई ना करौ, सब लंफै चांद सितारा है, मैं आं सब सूं दूर एकलो सांची प्रीत रो हमराही हूं कोई मनै जाण सकै तो, मैं पवन प्रेम री गहराई हूं।  

मां

  मैं मां पर लिखण मै मोड़ो कर दीन्हो, म्हारै कनै सबद भी कोनी हा, क्यूं कै मैं म्हारी मां नै दैखी कोनी, वा किसीक ही,कैड़ौ सुभाव हो, पण मैं जगत री ओर मां'वा नै देखूं, अर सोचूं, मां किसी भी जूणी मांय हुवै, बीं रो सुभाव,प्रेम अर बुचकारणो, सगळै ऄकसो ई हुवै !

मजदूरी मजदुर

  दिहाड़ी वाळो जद घर सूं निसरै, खुद रा,माईता रा सपना सागै आखै दिन सुरजी तळै तपै परिवार सुख री आस मांय सैंस मिनखां री बात सुणे जण जा'र आ दिहाड़ी मिळै पण जगत रा अधकिचरा धनी मजूर री मजूरी री तौहीण करै रिस्तेदार बी रिस्तेदारी छोडो बतळावै तो लिलाड़ सळ भरै मजदूर च्यारां कानी सूं दबेल है अमीरां री अमीरी रो खेल है गरीब नै कुण कद साख देवै दिहाड़ीयो हमेस पिसतो रेवै मिनखां री आ मानसिकता समाज मांय दू भांत भर देवै मजूरियो हमेस ऄकलो रेवै। पवनकुमार राजपुरोहित 

करणी माता भजन देशनोक दरबार

  मां काबां वाळी किनियाणी... ऊंचो शिखर भवन निराळो देशज देशनोक धणयाणी भगतां री अरदास सुणै मां काबां वाळी किनियाणी... तू बौपार वणज चलावै मेहाई ई पुरै अन्न पाणी दास रै सिर हाथ राखै मां काबां वाळी किनियाणी... दूर देसावर बैठ्यां हां थारै भरोसै माताराणी दीन दुखी री बात सुणौ मां काबां वाळी किनियाणी... थारी किरत पवन मांडी तू सिखाई कलाम चलाणी नित उठ मैं थारौ नांव रटूं मां काबां वाळी किनियाणी... ©पवन कुमार राजपुरोहित

होली पर राजस्थानी कविता

होळी गीत 'धमाळ' सैर मै बैठ्या गांव उडीकै, कार-बार नहीं छोड़ उठिजै। अंतस फागण हिलोर उठावै, चंग धमीड़ा री याद दिरावै। बेली भायलां नै फोन मिलावै, केवै,अबकै होळी जोर बतावै। गांव रो जनसंघ खाटू जासी, श्याम धणी रै धोक लगासी। चालौ साथीड़ा गांव चालस्यां, काम-काज नै फैर दैखस्यां। पचरंग बसंत री मौज लूटस्यां, चंग,गुलाल अर गैर खेलस्यां। ©पवनकुमार राजपुरोहित